कविता की नदिया
(कवि: महावीर उत्तरांचली) शब्द कहें तू न रुक भइया कदम बढ़ाकर चल-चल-चल-चल कविता की नदिया
(कवि: महावीर उत्तरांचली) शब्द कहें तू न रुक भइया कदम बढ़ाकर चल-चल-चल-चल कविता की नदिया
सुशील शर्मा खून में सनी औरतें और बच्चियां हैं । क्षतविक्षत और छलनी जिस्म हैं
(पीठ पर कचरे का थैला लादे अनाथ बच्चे पर कविता) सुशील शर्मा मैं अनाथ हूँ,सड़क
सुशील शर्मा जब तक तुम हां न कर दोगी, यूँ ही रोता जाऊंगा। बिन तेरे
तुम आस-पास जब रहते हो, ये फिजा महकने लगती है , होठो पे हँसी खिल
खनकती पदचाप से आओ मेरे द्वारे कनकधारा। हमें देना पूर्ण वैभव, श्री, यश, मान माते
राग द्वेष लालच को हटाकर, अहंंकार को जड़ से मिटाकर, नई उमंग से उजियाला लाओ
भक्त हूं भगवान का सताया हुआ भगवान भरोसे है भगवान आया हुआ हनुमान छोड़ता हूं
संबंधों का हाल सुनाने अब कहाँ आती। सुधियों की पाती हाँ सुधियों की पाती। कच्ची