युद्ध
– अंकुश्री
दोनों देष बहुत संपन्न समझे जाते थे. उनके अनेक व्यवसाय और उद्योग थे. दूर-दूर तक उनका बोलबाला था. आवश्यकता के अनेक सामानों के लिये बहुत-से लोग उन पर आश्रित थे. धीरे-धीरे दोनों की हैसियत और अच्छी हो गयी.
संपन्नता बढ़ने के साथ ही उन्हें सुरक्षा की चिंता होने लगी. अब उनके उद्योग उपयोगी सामग्रियों की अपेक्षा सुरक्षा सामग्रियां अधिक बनाने लगें¬. धीरे-धीरे उनके उद्योग और व्यवसाय सुरक्षा-सामग्रियों पर ही निर्भर हो गये.
दोनों में से एक को यह आशंका हो गयी कि दूसरा उसके विरुद्ध हथियार का उपयोग करने वाला है. शंका भर की देर थी. एक-दूसरे पर धावा बोल दिया गया. दोनों में घमाशान युद्ध छिड़ गया. आक्रमण-प्रत्याक्रमण के दौर में दोनों खत्म हो गये. अनेक पड़ोसी भी युद्ध की चपेट में आ गये. बहुत थोड़े-से जो लोग बचे थें वे अपूर्ण हो चुके थे. चारों तरफ हाहाकार मच गया. किसी को पूछने वाला कोई नहीं रह गया.
युद्ध के बाद धरती की स्थिति भी पूरी तरह बदल चुकी थी. जहां की धरती उपजाऊ थी. वहां ज्वालामुखी फूट पड़ी. जहां पहाड़ था, वहां नदी बहने लगी. जहां बस्ती थी, वहां पर्वत दिखायी देने लगे. पूरी धरती पर रद्दोबदल हो गया. पूरा पर्यावरण बदल गया. बचे हुए लोगों की स्थिति यह थी कि किसी को पैर था तो हाथ नहीं, आंखें बची थीं तो वे सुन नहीं सकते थे. कहीं न ज्ञान बचा था न विज्ञान. अपनी रक्षा के लिये लोगों के पास कुछ था ही नहीं तो ज्ञान-विज्ञान की रक्षा कौन करे !
धरती का पर्यावरण बदलने में लाखों वर्ष लग गये. धीरे-धीरे लोगों ने विकास करना शुरू किया. विकास आगे बढ़ा और मानव फिर इस स्थिति में आ गया कि वह युद्ध कर सके. युद्ध की उनकी इच्छा बलवती होने लगी. लेकिन इस युद्ध के लिये उनके पास वैसे हथियार थें, जिनका उपयोग लाखों वर्ष पहले आदिम मानव किया करते थे. फिर भी उन्हें संतोष था कि वे ऐसी स्थिति में पहुंच गये हैं कि अब युद्ध कर सकते हैं.