विनती सुन लो किशन मुरारी ।
हर लो विपदा सभी हमारी ।
नेह्धारा से नस नस सींचो ।
महका दो जीवन फुलवारी ।।
कण कण में तुम बसते भगवन।
निशिदिन भजता तुमको ये मन।
तुमरे नेह से मेरा गुँजन जीवन ।
जी नहीं सकते कृष्णा तुम बिन ।
तुम संसारी होकर भी वैरागी ।
हम बैरागी होकर भी संसारी ।।
ना वृन्दावन में भले जगह दो ।
मथुरा, गोकुल से भी भगा दो ।
जो भी चाहें हमको सजा दो ।
पर अपने चरणों में बिठा दो ।
खाकर नित ठोकर तुम्हारी।
वैतरणी तर जायेगी हमारी।।
माखन खवैया कुछ तो बोलो ।
कमलअधर मुखारविंद खोलो ।
यूँ चुप रहकर न भक्ति तोलो ।
इस बेरस में कुछ तो रस घोलो ।
"दीपक"में भरो नूतन चिन्गारी ।
विनती सुनो मेरे ब्रज बिहारी ।।
गोविन्द बोलो सब गोपाल बोलो ।
राधा रमण प्रभु जगपाल बोलो ।
गोविन्द बोलो सब गोपाल बोलो ।
राधा रमण प्रभु जगपाल बोलो ।।
@ दीपक शर्मा
http://www.kavideepaksharma.com